रात सारी कट ही गयी, जागते हुए तेरे ख्वाबों में,
तेरी यादों ने सोने ना दिया, तेरे ख्वाबों ने जगने न दिया,
फिर ख्वाबो के परिंदे उड़े, यू रात पिघली और दिन हो गया...
अब दिन भी कट ही जाएगा, मेरे शहर की जिम्मेदारियों में,
पर बता उस शाम का क्या करूँ, जो सिर्फ तेरी हुआ करती थी, तेरे शहर के बातों की हुआ करती थी..
यकीन कर, अब वो शाम, शाम ना रहीं.. खोखला सा कुछ बन गई हैं, जहाँ मैं भटककर रह जाता उन वीरानों में... तेरे सींवा..
पर ख़ैर, फिर रात होंगी, फिर ख़्वाब-ओ-याद का तमाशा होगा, तू तेरे आशियाने में सो जाएगी जब,
मैं फिर रात को पिघल कर दिन बनने का इंतजार करूंगा.. और फिर तेरे सींवा वाली शाम का...
#मोहा