पल होते नही इंतजार के खत्म
आ भी जाओ कि बहोत कम बची है सांसे...
सच है जुदा हुये थे हम फिर मिलने के लिये,
लेकीन अब याद नही, कब मिले थे आखरी बार हम
शायद सदियो पहले
जब कृष्ण ने बन्सी बजाई,
और राधा दौडी चली आई,
वही शायद लम्हा था हमारी मुलाकात का..
या फिर शायद तब, जब चांद छीटक कर धरती से
दूर अंतराल मे चला गया... अलग थलग... बस मेरी तरह...
किसीने कहा था कि आयेगी वो जब आयेगी कयामत...
हम थमे है बहते वक़्त मे एक लम्हे कि तरह
कि तुम आओ या फिर आये कयामत...
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