अकेला सा आसमां मेरा,
अकेलीसी जमीं..
न कोई ख्वाब आंखो मे
न कोई तारा आसमा मे मेरे
बस... फैली हैं खामोशी और
गहरा अंधेरा आसमा मे मेरे
संन्नाटो मे पुकारता फिरता हुं खोये यार को..
और वो हममे देखता हैं गुनेहगार को.
हर बार ऐसा क्यों होता हैं?
हर बार मेरा एक अपना क्यों खोता हैं?
नादान दिल भी खूब हैं,
आदत हो गयी हैं खोने कि, फिर भी रोता हैं.
अकेला हि तो चला था मै सफर मे,
क्यो मिले लोग मुझसे आकर?
जुडता गया हर किसीकी रूह से मै,
और वो छोडते चले गये,
हरबार मझधार मे लाकर.
बेदील हैं दोस्त कितने मेरे,
ख्वाबो को लुट कर ले गये कितने मेरे,
मैं उन्हीमे धुंडता रहा मसीहा मेरी दुआ के लिये,
वो ले गये मस्जिद से खुदा कितने मेरे.
तू खुश रहे तेरे काफिले मे,
और भी तुझे हम-राह मिले,
मैं अकेला,
अकेला सा आसमां मेरा,
अकेलीसी जमीं..
मुस्कुराते हुये आंखो मे हलकी सी नमीं..
nice one,
ReplyDeletesaddya mala asach vatat aahe.
Take care and continue the same again