Monday, June 12, 2017

तू, रात, मैं, तारे...

रात अपना आँचल फैलाये,
मुझे बुलाती है...
और मैं ठुकरा कर उसका सुहाना बुलावा,
सारी रात, तेरे साथ
उसी रात के किनार बैठा रहता हूं...
तेरे स्याह जुल्फों में उलझ कर,
इस रात से भी स्याह और गहरे मेरे सपने,
तेरी आँखों में बुनता रहता हूं...

चल, नाकाम कर आते है,
उस रात की गहरी साजिश,
हमें थपकिया दिलाकर सुलाने की,
चल, रात भर वही बैठे रहते है,
चांद से आँख मीचौलि खेलते रहते है,
और तारोंको गिन कर आधे आधे बाट लेते है...

तू उनसे अपना दामन सजाना,
मैं मेरे हिस्से के तेरी छत पर टांगकर आऊंगा,
मेरी याद आये कभी तो,
मेरे हिस्से के तारें, फिर गिन लेना..

#मोहा

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