Saturday, July 1, 2017

दर्द छलक ही जाता हैं

दर्द छलक ही जाता हैं,
यू अफसानों को पढ़ते ही...
लफ्ज आ जाते है कागज पर..
गजलो में ढलते ही..

बारिश की बूंदों से फिर,
बजते रहते तालो पर..
कभी धुंध से छां जाते,
सर्दी में चलते चलते ही..

दिन तो तेरा होता था,
रात होती मेरी थी...
मिल जाते शामो में हम,
चाँद के युं पिघलते ही...

#मोहा

No comments:

Post a Comment